मुश्किल दौर मेंबहुत मुश्किल से
निकलना हो पाता है।
कहां जाना है कब जाना है
कहां पता हो पाता है।
कितने दिनों से सोच रहा हूं
किसानों के साथ जाने के लिए
मगर निकलना मुश्किल है।
जाना चाहता हूं।
पर कहां हो पाता है।
महानगरों में रहने वाले।
किसानों का
पैदा किया हुआ खाते हैं।
पर उनके साथ जाने में,
कहां अपना शॉप दिखाते हैं
कितना आसान है।
यदि वे भी किसानों के साथ
चलने का फैसला कर लें।
शायद इन शहरियों को देखकर
सरकार मन बना ले।
और कितना सरल हो जाये।
उनकी बातें मान ली जाए।
फिर दिवाली आ जाए
किसानों की नगरी में
जिसे उन्होंने आंदोलन के लिए
बसाया है।
काश उससे पहले।
कुछ दिन गुजार करके
वहां हो आना।
-डॉ लाल रत्नाकर
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