बुधवार, 21 जुलाई 2021

बहरूपिये तेरे कर्म


बहरूपिये तेरे कर्म
मेरे कर्म पर भारी है।
यह कैसी लाचारी है।
जनजीवन सब तबाह हो रहा।
यह कैसी जिम्मेदारी है
यह कैसी जिम्मेदारी है।
अवाम कराह रही है
हाहाकार मचा है।
तुमको उनकी कोई चिंता।
नहीं तुम्हें तो।
सत्ता का नशा ही भारी है।
इसीलिए मंदिर बनाने की तैयारी है।
क्योंकि तुम्हारी सत्ता का रास्ता।
मंदिर से होकर गुजरता है।
आम आदमी की खुशहाली का रास्ता।
गांव और खेतों से होकर गुजरता है।
इसीलिए यह सरकार गांव को।
बर्बाद करने पर लगी हुई है।
और आम आदमी की मजबूरी क्या है।
वह मौन क्यों है।

-डॉ लाल रत्नाकर 

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