उस तपस्या को हमने देखा है।
देखा तो आपने भी है शायद,
भूले नहीं होंगे, उस तपस्वी को।
जो उस समय तपस्या के लिए
सुदूर वादियों में विराजमान था
जब देश के चुनाव का रेजल्ट।
ईवीएम मशीनें उगल रही थी।
परिणाम भी तप के अनुसार
तपस्वी के पक्ष में आ रहे थे।
ईवीएम मशीनों के सच पर,
आंच न आए इसलिए तपस्या !
करते हुए दिखाई देना मात्र ।
दिखावा नहीं था बल्कि सच को
बहुत सूक्ष्म ढंग से न दिखाने का
एक प्रतीकात्मक तरीका था।
इस पर बहस नहीं होनी थी।
क्योंकि मीडिया के लोगों को
पहले से ही समझाया गया था।
पर आशंका तो जरूर थी।
अवाम को तो पागल ही पागल
ऐसे थोड़े ही बनाया गया था।
डॉ लाल रत्नाकर
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