रविवार, 12 सितंबर 2021

आइए मिलकर?


आपके सामने एक समर है
जीवन जीने के अधिकार का
गलतियां आपने बहुत की हैं
आइए मिलकर?
अब एक अच्छी बात करें।
यदि यह अवसर 
इस बार आपके हाथ से 
निकल गया तो सदियां 
लग जाएगी 
उसके लिए संघर्ष करना
संभव नहीं होगा।
असंभव को संभव बनाकर
संविधान की जगह 
मनुस्मृति लाकर।
हजारों साल के लिए
धार्मिक गुलाम बनाकर।
वह अत्याचार किए जाएंगे
जिसकी परिकल्पना भी 
आपके मन में नहीं है।
जरा उनसे पूछिए जिन्होंने,
प्रशासनिक अधिकारी होकर,
कुछ नहीं कर पाए
सीधे जेल की हवा खा रहे हैं।
राजनेता होकर।
जेल के सिखचों के पीछे
कैसा जीवन बिताये हैं।
जरा उनसे पूछिए 
जो सत्य की बातकर
जीवन जेल में बिता रहे हैं।
आपको जुमले सुनाकर,
आपदा में अवसर 
की बात बता कर ।
किसानों को वर्षों से 
सड़कों पर बैठाए हैं।
काले कृषि कानूनों के सहारे
संघ की विचारधारा के
काले हथकंडो को 
कानून बनाकर।
किसानों पर लागू करने के लिए
असंवैधानिक तरीके से लाए हैं।
अगर आपकी समझ में 
नहीं आया है तो समझिए।
मीठा बोलकर फंसाने की 
साजिश ही इनका धर्म है।
इससे निकलना है तो 
संविधान को बचाना है।
हिंदुत्व के गीत गाना छोड़कर।
मानवता का डंका बजाना है।
निकलिए पाखंड से धूर्तता से,
निकालिए अपने मन से
लोभ लालच और झूठ।
नहीं तो निगल जाएगा आपको।
मनुस्मृति का अमानवीय स्वरूप
मानवता को बचाना है
इन संतो नुमा सामंती 
अत्याचारियों को भगाना है।
जुमले झूठ और वादों को
मन के भीतर पैठने नहीं देना है
मन की बात !
अपने भीतर से सुनना है!
"क्रूरता में करूणा"
की बात करना जुमला है
करुणा अलग है,
और क्रूरता ही करना है।
डॉ लाल रत्नाकर  

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