गुरुवार, 21 दिसंबर 2023

आवाहन:



हौसलों की आफजाई करना।
वैसे ही जरूरी है जैसे नफरत का विरोध।
आईए मोहब्बत के पैगाम लेकर!
एक बार फिर उनके बीच चलें।
जो भक्ति में अपनी शक्ति खो चुके हैं।
अंधविश्वास में अंधे हो गए हैं।
दुश्मनों के बीच सम्मानित हो रहे हैं।
इसलिए कि अपनों से नफरत करते रहें।
जिन्हें गुमराह किया गया है,
उनके सेनापतियों से ही।
जिससे वह लड़ न सकें अपने अधिकारों का युद्ध।
आंदोलनो से अलग हो जाएं,
और भूल जाएं अपनी गुलामी।
नाराज किया गया है चुगली करके।
अभिमान नहीं अपमान सहिऐ,
जो आपसे बिछुड़ गए हैं।
अपने स्वार्थ में समाज को भूल गए हैं।
संस्कृति को, साम्राज्यवाद को,
समझने की भूल कर रहे हैं।
वर्तमान में कंगाल हो रहे हैं।
और भूत में मालामाल होने की कल्पना में।
भक्तनुमा दिन रात उनका गुणगान कर रहे हैं।
जिनके खिलाफ कबीर ने उनको जगाने का प्रयास किया था।
पेरियार ने प्रयोग किया था और सच्चाई उजागर की थी।
उनके अज्ञानता के पाखंडी़ हथियार की।
ज्योतिबा फुले ने आंदोलन खड़ा किया था।
बाबासाहब ने जिनको अधिकार दिया।
मगर वह हैं कि माया के घनचक्कर में पड़े हैं।
आईए चलिए उनके बीच चलते हैं।
अगर आप समय से नहीं गए।
और उनके इर्द-गिर्द घूमते रहे,
जो आपको और आपकी जाति को नफरत करते हैं।
आपसे दिखावटी मोहब्बत की मिमिक्री करते हैं।
जो विषाणुओं की तरह वहां दूत लगा दिए गए हैं।
जो उन्हें पाखंड में पारंगत कर रहे हैं।
अपने लोगों से ही नफरत के गुर सीखा रहे हैं।
बहुजनों की जातियों से जातियों को लड़ा भिड़ा रहे हैं।
नफरत के साजो सामान,
निरंतर उनके मध्य ले जा रहे हैं।
आईए उद्घाटन करिए नए समाजवाद की।
समता के सिद्धांत की।
कहीं बहुत देर ना हो जाए।
संविधान को बचाने के अभियान की।
-डॉ लाल रत्नाकर

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