चित्र बोलते हैं
इनकी आवाज सुनना
इनकी आवाज बनना
इन्हें निरंतर आवाज देते रहना
जब शौक बन जाए
तब तब अनेक बंधन
बांधने की कोशिश करते हैं
कुछ नये ज्ञानवान के
अंकुश के शब्दबाण
झेलते हुए।
फिर फिर कई बार
उदास भाव से
जब जब वक्त मिले
रचने लगता हूं,
वह नहीं समझ पाते
और मैं रुक जाता हूं
तब वक्त निकल जाता है
तो जिनकी आवाज दब जाती है
और मेरे हाथ रुक जाते हैं।
इसलिए पेन और कागज
हमेशा अपनी थैले में रखता हूं
जीवन दायिनी औषधि की तरह
हमेशा हर समय हर जगह।
पर वह इस्तेमाल ना हो,
तो उस अपराध का दोष
किस किस पर जाता है।
कौन तय करेगा?
-डॉ लाल रत्नाकर
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