तुम कब चले जाओगे
कौन जानता है।
जब तक हो तब तक
तुम्हें चैन नहीं है।
झूठ, फरेब, चोरी, बेईमानी, कुकर्म
जितने भी बुरे शब्द हो सकते हैं
तुम्हारे लिए कम हैं।
फिर भी यह समाज
तुम्हारा सम्मान करता है।
क्या यही इस देश का
सर्वनाश का कारण नहीं है।
पहले के समाज में ऐसे लोगों को-
चोर उचक्का ?
व्यभिचार दुराचारी?
मक्कार और हरामी?
आदि आदि शब्दों से
संबोधित नहीं किया जाता था?
यह सब आचरण कहां चले गए।
क्या जो गए वह सब
अपने साथ लेते गए।
आज इसी प्रतिभा के धनी।
कितने सम्मानित हो रहे हैं
इस समाज में।
-डॉ लाल रत्नाकर
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