इतरा रहे हो शर्म देश को आ रही है !
तुम्हारे नाज़ायज़ बाप तुम्हें बेच रहे हैं !
"आयोग"अयोग्यता की पराकाष्ठा पर !
अंधों की तरह तुम बिक रहे हो आने पौने में !
तुमने बिहार को देखा ! वह बुद्ध की धरती है !
वहां झूठ बेईमानी, तानाशाही नहीं चलेगी !
"आयोग"अयोग्यता की पराकाष्ठा पर !
तुम्हारे जैसे अफसर मिल जरूर जाएंगे !
पर कितने कुछ तो ईमानदार होंगे ही !
गुजरात में भले ना हों क्योंकि ?
उनको जेल में डाल दिया गया है !
हो सकता है वह भूल गए हों कि वह !
संविधान की शपथ लेकर आये थे !
बेच दिया हो अपने वसूल कारपोरेट को !
"आयोग"अयोग्यता की पराकाष्ठा पर !
-डॉ० लाल रत्नाकर

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें