शनिवार, 5 जून 2010

एक कविता हमारी

डॉ.लाल रत्नाकर


एक कविता हमारी, एक कविता तुम्हारी
जो आज जी के हमारे, जंजाल बन गयी है
एक बेटी थी उनकी, पर  बेटा नहीं था  ?
बेटे के लिए ही अपनी प्रतिज्ञा थी छोड़ी
जिससे दो दो बेटे और एक बेटी आ गयी
मगर एक को जब विदा कर दिया तब
दोनों अपनी, तरह तब खड़े हो गए  !
दूसरे को सौप, सारी संपत्ति दिया  !
पर विदा होके भी, वो जुदा न हुयी !
जिनको सब कुछ दिया, वो जुदा हो गया। 

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