सवर्ण
कहते है वर्ण व्यवस्था से
समाज बनता है .
और समाज में वर्ण व्यवस्था
आदमी और आदमी में
फरक पैदा करती है.
सवर्ण और अवर्ण
का अंतर कैसे तय होता है
यह कठिन सवाल कैसे
हल होगा.
मामला 'वर्ण' का है जिसमे
'स' और 'अ' वर्ण का
अर्थ बदल देता है ,
पर जब स्कूल में
अ से अच्छा और स से सडियल
का बोध कराया जाता है
क्या यह भी जान बूझ कर
पढाया जाता है .
वर्ण के माने भिन्न -भिन्न
कैसे , रंग के वर्ण
विविध वरनी एक तस्वीर
सवर्ण है या अवर्ण है
पता लगाने वाले पता
लगा लेते है
क्योंकि उन्हें पता है
की किस वर्ण का क्या काम
यदि पनिहारिन है
तो वर्णक्रम में अवर्ण है
यदि 'श्रृंगार रत' है तो सवर्ण है
यदि वस्त्र नहीं है तो अवर्ण है
और कपडे उतारकर निर्वस्त्र है
तो सवर्ण है .
उदाहरन के लिए शास्त्रों में
'द्रौपदी जो है'
पिछड़े इस सड़ी व्यवस्था के
अपने कर्मों और कुकर्मों से
अहंकार से स्वार्थ से
सदियों से पराजित पर ताकत से
आह्लादित, समझ से परे
दुश्मनों के चंगुल में जकडे
अपनों से अकडे हुए भीरु
भयभीत पर साहस का दिखावा
वास्तव में यही है पिछड़े
जिनकी बड़ी से बड़ी संगठनिक
इकाई है
इनके मध्य सोच और न ही कोई
योजनाबद्ध लडाई है क्योंकि इनके
नेतृत्व की कमी है.
योजनाबद्ध लडाई है क्योंकि इनके
नेतृत्व की कमी है.
पर उनको गुमान है
की उनका सारा जहान है.
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