मंगलवार, 9 नवंबर 2010

मेरे 'तथाकथित' दोस्तों ने मेरे खिलाफ एक 'षडयंत्र' रचा....................

डॉ.लाल रत्नाकर
एक 
मुझे नहीं पता की उन्होंने ऐसा क्यों किया
पर किया तो उन्होंने ही
यह तो पता है क्योंकि जब मै यहाँ आ रहा था
तो मेरे गुरु जी ने बताया था
और एक सन्देश भी दिया था कि-
पांडे से कहना उसका काम कर दिया
काम क्या था यह तो नहीं बताया
पर काम हो गया यह जरूर बताया था
जब मै यहाँ आया था तो सन्देश को
सन्देश कि तरह मैंने दे दिया था
तो पास बैठे झा साहब ने कहा था
इस बार एम्.ए. का पेपर तो
डॉ.मकबूल का ही था.
तब भी मैंने यह नहीं सोचा था
कि काम क्या किया होगा
कापियां जंचवाने कि जिम्मेदारी
क्या पांडे कि रही होगी
पर पता नहीं और कोई काम
रहा होगा पर मैंने अब भी जानने कि
जहमत में नहीं पड़ा .
डॉ. मकबूल हमारे गुरु थे
उनसे जो मैंने सीखा था
उसमे कर्तब्यनिष्ठ होना और कर्मठता
पर उन्होंने यहाँ के लिए एक
'उपदेश' दिया था
सावधान रहना बहुत 'हरामी' है
दोनों !
मै सावधान तो था पर
एक बात और कहा था 'उन्होंने'
कि वर्क कि वजह से वे
तुमसे बहुत पीछे छूट जायेंगे
जल्द ही .
पर उन्होंने 'हरामी' क्यों कहा
ऐसा तो  वह कभी नहीं कहते थे
दो 
मै भी उत्साह में था
समझने कि पूरी कोशिश
शायद नहीं कि होगी क्योंकि
मै इससे पहले यह नहीं जानता था
कि पढाई में जाती और नौकरी में
जातिवादी होना क्या है.
यहाँ आकर जो मिले मिलने में
बहुत ही सज्जन मृदुभाषी
पर मन से काले और बहुत काले
मिश्रा जी पूरब के थे
अग्रवाल साहब कहाँ के थे
मैडम को मेरे शहर कि जानकारी थी
सबसे मिलकर 'अच्छा' लगा
यादव कि मिठाई और चाय कि
दुकान !
त्यागी का गुप चुप रहना इतना
तो समझ में या सझने पर
मज़बूर कर रहा था कि 'यह कैसा आदमी है'
पर बाद में पता चला कि वह
मेरे विभाग के ज्ञानियों को जानता था
क्योंकि उनकी श्रीमती साहिबा ने
एम्.ए. यहीं से किया था .
तब यादव जी 'संघ' के 'सचिव' थे
उनकी खिचाई हर कोई करता था
पर उन पर कोई फरक नहीं
पड़ता था .
पर शुरू के दिनों में
चुप चाप पर सब कुछ
सुनता रहा, एक दिन एक
खँडहर हुआ इन्शान (हैवान बाद में)
आया और कहा यादव जी
को हटाना है
कहाँ से 'सचिव' शिक्षक संघ के पद से
  
तीन 
धीरे - धीरे
उनकी प्रक्रिया चलती रही
बात आगे और आगे ही बढती रही,
आज हम वहां खड़े थे जहाँ
कभी मेरे विरोधी खड़े थे
क्रमशः  

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