सोमवार, 22 नवंबर 2010

आदमी या भेड़िया.

आदमी या भेड़िया.  
डॉ.लाल रत्नाकर                                                                        

हमारा हक़ तुम्हारे हाथों में
जिसने भी दिया होगा ,
उसका मन तुम्हारे प्रति                      
नरम और मेरे प्रति गरम होगा.

सलामती तो इतनी है
कि इश्वर ने तुम्हे कम और
हमें हुनर देते वक्त
यह इंतजामात तो नहीं किया होगा.

जो भी हो तुम्हारी मुस्कान
के पीछे जो रूप नज़र आ
रहा है वह स्वाभाविक तो नहीं
है कुटिलता का जिसे तुमने .

पता नहीं कहाँ से सीखा
होगा अपनी जाति से कुल से
या खुद बनाया है
अपना कवच जिससे भेड़िये सा .

स्वरुप नज़र न आये
कि तुमने कितने हमले / या
कोशिशें कि है बस्तियों से
होनहारों कि हत्या की या.

तुम्हारा रूप और उसके
पीछे छुपा हुआ तुम्हारा आकार
कितने समझ पाए है
की जब तुम इन पर अपनी .

भूखी नज़र या भेड़िये
की आदत के खिलाफ बिना डरे
मानवता से खूंखार
हमला करते हो क्या लगता है.

आखिर जिनका हक़
तुम्हे दिया गया है वो इतने
ना समझ तो नहीं है
की तुम्हारी हरकतों से .

वाकिफ न हों और
तुम्हारे भेड़िये नुमा करतब
से खुश हो लेने वाले
तुम्हे आदमी समझ लें .

यही हाल सदियों से
तुम्हारा रहा है इलज़ाम
जिनको लगा क्या
यही भेड़िये वाला करतब .

तुम्हारा रहा है, पता है
यह सच पचाने की तुम्हारी
अंतड़िया सदियों से
तुम्हे जो आदत दी है वही.

आदमी के रूप में तुम्हे
भेड़िया बना दी है पर तुम हो
की आदमी की तरह नहीं
जब ही ही ही करते हो तब.

आदमी नहीं भेड़िया
नज़र आते हो, उसे छुपाने के लिए
आदमी जैसा रूप और
स्वांग रचाते क्यों हो ?                                                                          

1 टिप्पणी:

Sunil Kumar ने कहा…

आदमी नहीं भेड़िया
नज़र आते हो, उसे छुपाने के लिए
आदमी जैसा रूप और
स्वांग रचाते क्यों हो ?
आदमी कि विवेचना, बहुत खूब, बधाई