गीत लिखो हम सुनेंगे ही नहीं
और कहेंगे
यह गीत नहीं गालियाँ हैं
गालियाँ दो
वह मुझे अच्छी लगें या न लगें
पर इनका इस्तेमाल हमें आता है
हम बताएँगे
की वह गीत नहीं गालियाँ थीं
क्योंकि हमने
उनका वरन किया है जिन्हें हम
गालियाँ देते रहे हैं
वो मेरी सुनते हैं गालियाँ, और
बेवकूफी भरी बातें
और तो और वो सर झुकाए
खड़े रहते है
लोगों को लगता है अड़कर खड़े हैं
मैं जानता हूँ
इनकी आदत है खड़े रहना
स्वामी के इशारों पर, पर ये
स्वामिभक्त
आड़ में मुझे गालियाँ देते है
और कहते हैं
मै तो उसका घोर विरोधी हूँ
बीर रस का
यही गान उन्हें मेरे सताए हुए
को रास आता है
इसीलिए उनकी दी गयी गालियाँ
मेरे लिए अमृत
पान कराती है हमें भी और उन्हें भी
पर जो गीत
मुझे गालियाँ लगते है उन्हें लिखने
वाले मुझे
रास नहीं आते क्योंकि वह जानते हैं
पूर्व के मेरे
कर्मों कुकर्मों को पर मैंने अपने यश
गान के कई
मौके उन्हें दिये हैं पर वो गाते ही नहीं
गीत वह
उन्हें लिखना ही नहीं आता जो मुझे
रास आता है
जिनमें लूट हो, लूट की छूट हो, अहंकार
और अत्याचार हो
फरेब हो, हड़पा हुआ अधिकार हो
भ्रष्टाचार को
शिष्टाचार कहने का साहस हो
यदि यह नहीं
आता तो गीत लिखते ही क्यों हो
भले ही
गीत लिखो हम सुनेंगे ही नहीं
और कहेंगे
यह गीत नहीं गालियाँ हैं और
इन्हें साबित
करने का हर प्रयास करेंगे जैसे भी हो
सबूत इकठ्ठा करेंगे
अपने दुश्मनों को दोस्त बनाकर
क्योंकि
जिस कुर्सी को हमने हथियाया है
मैं जानता हूँ
मैं इसके लायक नहीं हूँ यह जानकर
यदि मैं गीत
को ही गीत कहूँ तो इस युग में
मेरा साथ
कौन देगा क्योंकि यहाँ मेरे जैसे
अब ज्यादा लोग
आ गए हैं कुछ ने हमें ख़रीदा है
और कुछ और
तरह से कीमती है उनकी नियत
को हम जानते
हैं और हमारी वह इसलिए वो जो
कहते है उसे
समझो क्योंकि मै कभी वह नहीं
कहता जो
करता और कराता हूँ यही तो बात
चला नहीं लूट रहा हूँ और दम ठोंक
कर दफ्तर में
बैठकर रिकार्ड कराता हूँ की यह भाड़
में जाय इसे मैं बर्बाद
करके छोडूंगा, क्योंकि मुझे याद है
मेरी बर्बादी
का काम यहाँ हो चुका है मुझे
वह हर षड़यंत्र
करना है जिससे जो चैन है वह
उनका जो
गीत लिखते हैं उनका या उनके 'ओ'
भले ही
गीत लिखो हम सुनेंगे ही नहीं
और कहेंगे
यह गीत नहीं गालियाँ हैं .
(डॉ.लाल रत्नाकर)
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