शनिवार, 8 जनवरी 2011

गीत

डॉ.लाल रत्नाकर

ये गीत 
उनके लिए
जिन्हें हम समझते हैं की
ये भले लोग
कभी भी बुरा नहीं सोच सकते
पर
कई बार उनकी चालाकियां
इस कदर बेहूदा होती है !
की आदमी की
मर्यादा, मेहनत, मशक्कत
सारी की सारी 
उनके चलते, 
मिटटी की तरह बिखर जाती  हैं
तब भी वह यही 
और यही कहते हैं हम इनके
सच्चे हितैषी हैं,
पर 
यही हैं हमारे समाज के असली 
'कोढ़'
जो सफेदपोश तो दिखते हैं
पर होते नहीं 
हमारा समाज सदियों से 
इन्हें ढो रहा है 
आओ हम इनके सच को
जगजाहिर करें और कोशिश 
करें 
इनका भ्रष्टाचार मिटाने का
नाटक करके 'नहीं'
उतना ही नहीं  
उनसे कई गुना ज्यादा 
भ्रष्टाचार करके
जिससे इनका भ्रष्टाचार सड़कर 
सूख जाये, अतिवृष्टि से 
जैसा होता है. 
ये सूखे से नहीं सूखने वाले
क्योंकि सूखे से बचने के लिए
इन्होने इन्तज़ामातं किये हैं
उस इंतजामात पर कब्ज़ा करना
इनकी नज़र में
और न्यायलय की नज़र में भी
जायज़ नहीं होगा
क्योंकि इन्होने संबिधान में
संसोधन करने की 
आज़ादी हासिल की है
हमारी बे-वकुफियों से 
अन्याय को न्याय में तब्दील करने की
खुली छूट है .
अतः
उनके लिए
जिन्हें हम समझते हैं की
ये भले लोग
कभी भी बुरा नहीं सोच सकते
दुआ करनी होगी 
दवा करनी होगी 
उनके मानसिक इलाज के लिए .
जिसमे इतने खतरनाक 
सामाजिक विषैले जीवाणु
भरे हैं जिनके चलते वे 
हमेशा हमेशा खा रहे हैं 
देश को, समाज को, योग्यता को 
अपने और अपनों के 
'नाकारों के खातिर'
चित्र : कुमार संतोष : एक्रेलिक ऑन कैनवास  


  

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