गुरुवार, 30 अगस्त 2012

इन पर भरोसा करना किसी कुत्ते पर भरोसा करने से ज्यादा खतरनाक तो नहीं है।

डॉ. लाल रत्नाकर 
कोशिशें लाख करो , कैसी भी करो !
जमीन खोद डालो आसमान में छेद कर दो
गिरोह खड़ा कर लो पर 'आदमी' की तरह
नहीं 'जानवर की तरह' जो काम कर रहे हो
उसे विवेक से कोई 'तरजीह' के लायक भी नहीं
समझेगा , जातीय गठबन्धनों की तुम्हारी निति
आदमी न होने की पहली पहचान है .
जानवर हो न हो पर 'झुण्ड' में दिखते जब हो 
ऐसे लगता है जैसे किसी 'शेर' से डरकर
एकजुट होकर डरे हुए से 'जानवरों की तरह'
दुबके हो किसी 'भयावह' वजह से .
पर तुम्हारे डरने का कोई मतलब तो नहीं है
अनायास डरे हुए हो, क्यों क्या यह गलत है?
यदि ऐसा नहीं है तो सारा अपराध करने के बाद
साधू की शक्ल में तुम्हे अपनी जमात को
बचाने के लिए गोल बंद हो गए हो ?
या किसी नयी योजना पर काम कर रहे हो 
फिर किसी को फ़साने के लिए .
देखो उस सफेदपोश को
जो अपराधियों का सरगना है
उसे शर्म नहीं आती और न ही वह शर्माता है
बेशर्म ! बे हया ! बदतमीज़ ये सारे वाक्य उसके लिए
नाकाफी हैं। उसके सगे सम्बन्धी, चमचे चापलूस
सारे के सारे उसे 'गालियाँ बकते हैं'
पर जब भी उन्हें मिलता है 'मुस्करा कर'
और वे सारे बे-शर्म कभी उससे बेशरमी से पेश
नहीं आते जो अलग अलग उसे 'गरियाते हैं'
ये सारे वो लोग हैं जो 'आदमी' से नज़र तो आते हैं .
पर ये आदमी नहीं हैं ये आदमखोर से कहीं ज्यादा हैं
इन पर भरोसा करना किसी कुत्ते पर
भरोसा करने से ज्यादा खतरनाक तो नहीं है।

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