सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

हमारी गाँव की यादें

हमारी गाँव की यादें 
डॉ.लाल रत्नाकर

यादों में बसा गाँव, साँसों में बसा गाँव
अपनों से भरा गाँव, एहसाश भरा छाँव .

उम्मीदों से भरा गाँव, गोबर से सना गाँव
मडहों से सजा गाँव, खलिहानों से भरा गाँव

पुरवट से सिंचाई, फसलों की दौरिआहि
हेंगा की सवारी, भैसों की चरवाही .

बकरी का औषधि दूध, गदहे की सौम्य पीठ
खेतों की रखवाली, घस्छोलानियों की चिरौरी

गन्नों से सजे खेत, गदराये हुए खेत
ताजे अनाजों से सुबहा ही भरे पेट

बागों की छैयां में, गोंदी हो मैया की
खटिया हो भैया की, भौजी का आक्रोश

चूल्हे की पकी रोटी, कितनी ही ओ मोटी
माँ की कछरी की, ललछौं लिए दही की

चूनी की रोटी की, चोटे की फजीहत की
गुड की मारामारी, जलेबी की खरीददारी

नदिया में नहाने की, हर खेल में हार जाने की
घर में मार खाने की, बाबूजी के सामने आने की

भैसों को नहलाने की, नदी में डूब जाने की
पेड़ों पे चढ़ जाने की, कई बार गिरने की

बहुत याद आती है गुजरे हुए जमाने की
अब गाँव न जा पाने की और शहरी न हो पाने की


यादों में बसा गाँव, साँसों में बसा गाँव
अपनों से भरा गाँव, एहसाश भरा छाँव .
अखिल भारतीय कला उत्सव गाजियाबाद-2013 में बनाया गया मूर्तिशिल्प 





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