शनिवार, 16 फ़रवरी 2013

मंच

मंच 
डॉ.संजय सिंह के संग्रह में 

मंच 
पर पहुँचने के लिए
पात्रता की पहचान का 
कोई मानदंड  है तो 
यदि वह मानदंड 
हम भी अख्तियार कर लें
तो कोई मंच मेरे क्या किसी के लिए मुश्किल नहीं है
पर मुश्किल जो है 
वह मंच तक पहुँचना नहीं
मंच पर जमे रहना या 
मंच को लगाए रखना,
और मंच पर टिके रहना भी
परन्तु जिस तरह के लोग 
आज मंचों पर नज़र आते हैं
उनको वहां बैठाने वाले भी 
जानते हैं की इसे या इसको 
कितनी देर तक मंच पर बैठाए रखना है .

दूसरी ओर एक और मंच है जिस पर बैठने का हक
है उसका जिसने तमाम अवगुण पाल रखा हो।
महाकुम्भ के तथाकथित संतों की तरह .
जिसे या तो जन्मना ये हक मिला है 
या वह ऐसी किसी व्यवस्था का हिस्सा है .
जैसे कुम्भीपाक !

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