मंगलवार, 21 मई 2013

हवा में लटक रहे हैं।


हवा में लटक रहे हैं। 
डा.लाल रत्नाकर

पहल करके देखो
क्या उनको समझ आता है
कि वो क्या कर रहे हैं ।

किसको गले लगा रहे हैं
किसको पेड़ से लटका रहे हैं
यह समझ के कर रहे हैं।

या रब उनको देखो
वो जो भी कर रहे हैं
गफलत में तो नहीं कर रहे हैं ।



















गफलत तो उनके शब्द कोश में है ही नहीं
पर लोग समझते है कि
ये गफलत में कर रहे हैं।

देखने वाले लम्बे समय से देख रहे हैं
कहने वाले निःसंकोच कह रहे हैं कि
ये हवा में हैं और..........

औरों को फुसलाने के चक्कर मे
खुद ब खुद ‘फुसल’ रहे हैं
औरों की वजाय खुद हवा में लटक रहे हैं।

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