दीवाली
(दीवाली पर बहुत गीत लिखे गए हैं पर मेरे लिखने का सन्दर्भ कुछ भिन्न है)
डॉ.लाल रत्नाकर
इस पर्व की प्रासंगिकता से सवाल करना
आसान नहीं है !
फिर भी जब विचार करता हूँ तो हर बार
ठिठक जाता हूँ !
क्योंकि उजाले की इक्षा में बड़े बड़े काले
कारनामें होते हैं !
नहीं ऐसा कहना अधार्मिक हो जाना है
तभी तो सच से !
बहुत दूर चले जाते हैं नियति की तरह
निति क्या करे !
हमारे अपने पराये उनके सब के सब
मतलब से भरे !
डिब्बे, उपहार, न जाने क्या क्या सब
उठाये फिरते है !
किसके कितने भारी भरकम हैं उपहार
क्या इस पर नज़र रखते हैं !
पता नहीं पर हमारे सामने वाले के घर
न जाने कितने !
सौगात के पैकेट हर साल आते रहते हैं
जैसे लोटे भर जल !
कुंए पर नहा एकादसी के दिन कोल्हू पर
चढ़ाया करते थे !
उसका मतलब आजतक समझ नहीं आया
फिर जल संरक्षण !
पानी बचाने के तख्तियां लगी देखि है हमने
पर पानी नहीं बचा !
अब तो गाँव में भी समर सबल लगाने लगे
जो पेड़ की जड़ों में !
जल भरने लगे अपने अपने खेतों के लिए
कुंएं कहाँ गए !
लगभग सब कुछ बदल गया दीये तक भी
पर अर्थ नहीं !
अब तो अन्धेरा बिखेरने वाले ज्यादा दीये
नहीं जलाते फिर!
खून जलाते हैं उनका जिन्हें इसमें रूचि नहीं
क्यों जलाते हैं !
उनका खून जिनमें उन्हें रूचि नहीं उनका वे
इसलिए नहीं !
इसलिए क्यों की खुन को वे खून नहीं समझते
अपना !
हमारे कुछ चाहने वाले कभी कभी ये एहसास
दिला जाते हैं !
जैसे निर्मला जी बता रही थीं की राजेन्द्र जी
दीपावली मनाते थे !
धन्य हैं वे जो आदमी के मरने के बाद भी
इस्तेमाल नहीं छोड़ते !
सामाँन की तरह घिसते जाते हैं बिना विचारे
जैसे विचार नहीं मरते !
(दीवाली पर बहुत गीत लिखे गए हैं पर मेरे लिखने का सन्दर्भ कुछ भिन्न है)
डॉ.लाल रत्नाकर
इस पर्व की प्रासंगिकता से सवाल करना
आसान नहीं है !
फिर भी जब विचार करता हूँ तो हर बार
ठिठक जाता हूँ !
क्योंकि उजाले की इक्षा में बड़े बड़े काले
कारनामें होते हैं !
नहीं ऐसा कहना अधार्मिक हो जाना है
तभी तो सच से !
बहुत दूर चले जाते हैं नियति की तरह
निति क्या करे !
हमारे अपने पराये उनके सब के सब
मतलब से भरे !
डिब्बे, उपहार, न जाने क्या क्या सब
उठाये फिरते है !
किसके कितने भारी भरकम हैं उपहार
क्या इस पर नज़र रखते हैं !
पता नहीं पर हमारे सामने वाले के घर
न जाने कितने !
सौगात के पैकेट हर साल आते रहते हैं
जैसे लोटे भर जल !
कुंए पर नहा एकादसी के दिन कोल्हू पर
चढ़ाया करते थे !
उसका मतलब आजतक समझ नहीं आया
फिर जल संरक्षण !
पानी बचाने के तख्तियां लगी देखि है हमने
पर पानी नहीं बचा !
अब तो गाँव में भी समर सबल लगाने लगे
जो पेड़ की जड़ों में !
जल भरने लगे अपने अपने खेतों के लिए
कुंएं कहाँ गए !
लगभग सब कुछ बदल गया दीये तक भी
पर अर्थ नहीं !
अब तो अन्धेरा बिखेरने वाले ज्यादा दीये
नहीं जलाते फिर!
खून जलाते हैं उनका जिन्हें इसमें रूचि नहीं
क्यों जलाते हैं !
उनका खून जिनमें उन्हें रूचि नहीं उनका वे
इसलिए नहीं !
इसलिए क्यों की खुन को वे खून नहीं समझते
अपना !
हमारे कुछ चाहने वाले कभी कभी ये एहसास
दिला जाते हैं !
जैसे निर्मला जी बता रही थीं की राजेन्द्र जी
दीपावली मनाते थे !
धन्य हैं वे जो आदमी के मरने के बाद भी
इस्तेमाल नहीं छोड़ते !
सामाँन की तरह घिसते जाते हैं बिना विचारे
जैसे विचार नहीं मरते !
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