एक लमहा गुजर जाने के बाद
हम लोग अब बूढ़े हो चले हैं
काश हम तब बूढ़े होते जब
हमारे चहरे, चमकदार थे और
हम कहने को जवान थे और
मन से बूढ़े मगज़मार थे
सम्मान और संपत्ति के अधीन
हम अपने गुमान में वजाय
इंसान के आखिर थे तो हैवान
आज एहसास होता है
वो गुजरा हुआ जमाना जब
हम मिलकर कर सकते थे
स्याह हुए इंसानियत के
सफ़ेद, रंगदार, चमकदार समाज
और बचा सकते थे उसके
कलात्मक चहरे पर नहीं
कर सके मानवीय मूल्यों की रक्षा
और न ही कलात्मकता की सुरक्षा
न जाने ऐसा क्यों होता है 'चतुराई से'
चापलूसी से या सही सही बातों के
बयां करदेने से काश हम भी
समझ पाते झूठे डरावने तरीके
जिनसे रक्षा होती हो इंसान नहीं
उसके सद्कर्मों की कभी भी कहीं भी
एक लमहा गुजर जाने के बाद
हम लोग अब बूढ़े हो चले हैं
काश हम तब बूढ़े होते जब
हमारे चहरे, चमकदार थे और
हम कहने को जवान थे और
मन से बूढ़े मगज़मार थे
सम्मान और संपत्ति के अधीन
इंसान के रूप में हैवान थे।
(डॉ लाल रत्नाकर )
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(चित्र; डॉ लाल रत्नाकर ) |
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