(चित्र ; डॉ लाल रत्नाकर ) |
गुजरे हुए बरस का अभी खौफ तो बचा है
लमहों के गुजर जाने का ख्याल तो बचा है।
गुजरना ठहरना और ठाढ़े रहना तो बचा है
आने जाने का यहां सिलसिला जो बचा है
जिनका डेरा डण्डा और तम्बू यहां बचा है
सच है कि उनका आडम्बर अभी बचा है।
सवालों के उत्तर बहुत सारे है वो वाजिब
मगर मेरे यारों को समझने के जो लाले पड़े है
अर्थ ! को है गिरवी मेरी मासूमियत में जो बचा है
कसाई के हाथों में जिसकी किस्मत पड़ी है
कुशल है अभी तक की तो क्रूरता की उसके
क्योंकि नसीहत के आडम्बरों में जो पड़ा है।
वे सपने चुराके जैसा तिमिर मढ़ रहा है
उजाले का झूठा वो ताज जैसा महल गढ़ रहा है।
चांदनी की छटा को जो शहर पर मढ़ रहा है
सूरज को ढ़कने की वो चादर गढ़ रहा है।
यही हाल है इस शहर का यारों आजकल
जो निकम्मों के संग सारा कल बुन रहा है।
मैंने देखा था ये ख्वाब जिस शख्सियत संग
उनपर कवर डालने का ये रंग चुन रहा है।
नए साल में ये उम्मीदें मर रही है मेरे दोस्त
क्योकि कसाई/ शिकारी जहां संतयी कर रहा है।
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