डायरी के पन्नों में शायरी के नियम लिखे हैं
महफ़िल में कहाँ इनकी जरुरत रह गयी है।
गाईये चुराईये ख़यालात उनके सोहबत में
जो बिना सोहरत के तड़प तड़प के मर गए।
मैं भी बिना पढ़े ही इस राह पर बढ़ चुका हूँ
मुझको नहीं पता मैं किस चौराहे पे खड़ा हूँ।
वो लूट रहा है जग की इस्मत इज्जत शब्दों के जाल से
मैं हैरान हूँ नियत ईमान और अपनी कड़वी जुबान से।
लाइब्रेरियों में अब जाने की जरुरत किसे कहाँ
पॉकेट में हमने सबकुछ की जगह बना लिया।
देखा हैं मैंने इस सच को अंदर तक तो झाँक के
काला पड़ा है सब वहां जो पलीता लगा दिया।
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