रविवार, 8 फ़रवरी 2015

बहुत दिनों के बाद दिखा है .............


बहुत दिनों के बाद दिखा है हमको सूरज 
काले बादल ढके हुए हों जैसे सालों साल। 

आशा है अब बादल चाटेंगे उसके रस का स्वाद 
नहीं छुपेगा नहीं झुकेगा अब उसका एहसास।

हमने आखिर ख्वाब बुने हैं और चुने हुए हैं 
जन्नत, मन्नत और प्रणय के हाथ सने हैं 

प्रतिभा के पागलपन के हमने चुने है हाथ हजार 
पकड़ पकड़कर उन्हें लगाया रंजन के संग साथ। 

बाजीगर के व्यापारी से खा जाए जब कोई मात 
वही दशा है वही दिशा है जिन्हे लगाया साथ। 
    
(Raosaheb Gurav पुणे के जानेमाने चित्रकार हैं, 
उन्हें मैंने अखिल भारतीय कला उत्सव गाजियाबाद -2013 में आमंत्रित किया था उनका व्यक्तित्व और काम सहयोगी और प्रभावशाली था)
डॉ लाल रत्नाकर 

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