रविवार, 1 नवंबर 2015

सब वाज़िब है !


नियति राज की, राजनीती की महिमा 
किसके बस में शेष देश प्रेम की गरिमा 
डाकू गुंडे लोफर लम्पट सब लगे हुए हैं 
यही समय की नियति राज की उनकी 
भेद अभेद जब जाती पात की लिखते 
सत्ता के सब रूप रंग के पावन हैं ये पत्ते
चोरी डाका अब काम आम हैं सत्ता का 
पैसा देकर पोस्ट लिया है लूट के खातिर
सरकारों की ओट लिया है लूट की खातिर
है विकास का नाटक केवल कागज तक
जंगल मंगल सब धरती के बाँट का केवल 
जब सब वाज़िब है, अब वाज़िब है शातिर
नियति राज की, राजनीती की महिमा 
किसके बस में शेष देश प्रेम की गरिमा 
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डॉ लाल रत्नाकर 

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