मंगलवार, 3 नवंबर 2015

हाथ तो है पर वो जो कटे हुये हैं।

हाथ तो है पर वो जो कटे हुये हैं।
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मुझे क्या कह रहे हो
सुनाई ही नहीं पड़ रहा है !
समाज, राजनीति, यश, अपयश
नहीं मैं जो कह रहा हूँ
ध्यान से सुनो पहले मुझे चुनो
नेता नहीं कैंडिडेट, फिर मुझे चन्दा दो
मैं जब वोट के लिये जनता के बीच जाऊँ
तो यैसा आचरण करो कि मैं बहुत शक्तिशाली हूँ,
क्योंकि मैं उस पार्टी का प्रत्याशी हूं !
जिस दल की मेरे प्रांत में सत्ता है।
एक काम और करो ?
मेरे अलावा जितने भी नेता हैं  
सबको मेरे कार्यकर्ताओं से दूर रखो !
कही ये उनसे मिल गये तो ये नेता हो जायेगा
जब ये नेता हो जायेगा तब !
मेरे बाल बच्चों का क्या होगा ?
मैंने अपने नेताओं को सपरिवार राजनीति में देखा है
मुझे क्या कह रहे हो ?
मैं तो वही कर रहा हूँ जो अपने आकाओं में देखा है।
इसीलिये तुम जो कह रहे हो मैं सुन नहीं रहा हूँ।
मैं तो ये कह रहा हूँ ?
मेरे दोस्तों गफ़लत में कहीं इसके कुनबे को
जिता मत देना !
नहीं तो अपने ही हाथ काटकर कांग्रेसियों की तरह
चुनाव के चिन्ह ही होकर रह जायोगे।
कटे हाथ भले ही चुनाव चिन्ह ही क्यों न हों
हाथ तो है पर वो जो कटे हुये हैं।

डा . लाल रत्नाकर

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