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भूले विसरे गीत
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मंगलवार, 3 नवंबर 2015
हार थक कर ।
ज़िन्दगी की आश तब तक
यातना की प्यास जब तक
हम सब ने बसेरा कर यहाँ तक
जानकर और अनजान बनकर
हम हमेशा पास रहकर दूर कैसे।
जो दूर थे अब पास ऐसे हुये
जैसे ओ हो गए इतने सगे
इतिहास बनकर, ख़्वाब बनकर
आज की सौगात बनकर
हार-थककर भूल से
किसकी बताएं आप सच सच
या छुपाये आप सच सच !
@रत्नाकर
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