शुक्रवार, 13 नवंबर 2015

पटाखे फोड़ने से !

न जाने क्या मिला इतने पटाखे फोड़ने से उनको
वो बहुतेरे पटाखे फोड़ रहे थे क्यों यह नहीं पता 
जिनसे हम बात करना मुनासिब ही नहीं समझे
पटाखों की आवाज़ से शायद वे चाह रहे थे हम
उन्हें रोकेंगे जिससे वे "धर्म" का बहांना लेकर
हमपर हज़ारों आरोप मढ़ सकें की ये अधार्मिक हैं
या पटाखे वाले की मदद के लिए जला रहे थे
अपनी लूट की कमाई जो उन्हें मिल जाती है
कमीशन के रूप में उन्हें क्या पता की यह सब
हमारी अवाम भी देख रही है इन पटाखों को
और बेसुमार पटाखों को जलाने वालों को भी।

@ डॉ लाल रत्नाकर

चित्र ; डॉ लाल रत्नाकर 


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