गुरुवार, 2 मार्च 2017

वह तो केवल मुखौटा है ?


डॉ.लाल रत्नाकर

वह  केवल राजनीती का ही क्षेत्र नहीं है ?
जहाँ समाज का सबसे कचरा जमा हो गया है।
और उसका मालिक केवल राजनेता ही हो गया हो !
और भी जगहें हैं जहाँ इस तरह के कचरे भरे पड़े है ?
जहाँ तक नज़र जाती है यह चारों तरफ हो रहा है ?
संत, सन्यासी, शिक्षक, चपरासी, प्रोफेसर, जन प्रतिनिधि और मंत्री,
कुलपति और मीडिया और न्याय की प्रक्रिया में कहाँ कहाँ की बात करें !
सर्वत्र, कचरा आ गया है क्योंकि वे नाक भौं सिकोड़ रहे हैं  ?
उन्हें लगता आरक्षण से काई की तरह वह छा गया है ?

उन्हें कौन बताये ये कचरा फ्राड और खास जाती वर्ग का ?
जो इस देश के तल में जमा हुआ है जब कोई हलचल होती है
तब अपनी शक्ति से सब कुछ कचरामय कर देता है ?
नहीं वह तो केवल मुखौटा है, उसके आका हर जगह बैठे हैं ?
समुद्र के तल में क्योंकि हमें तो समुद्र गहरा दीखता है !
और उसकी तलहटी तक जाने वाले को उसने साध लिया है।
तभी तो हम धीरे धीरे कुँओं को ढकते जा रहे हैं ?
जिससे कुंओं को खोदने वाले तह तक न जा सकें ?
और उन्हें हमारा सच न पता चल सके ?

तभी तो !
सदियाँ गुजर जाती हैं पाखण्ड को पाखण्ड समझते हुए !
पाखण्ड से पाखण्ड का उन्मूलन संभव नहीं है ?
राजनीती का पाखण्ड हो या धर्म कर्म का !
धर्म के पाखण्ड से जब बहुत जटिल हो गया है ?
राजनीती का पाखंड ?
वोट का गुणा भाग जड़वत और जहरीला हो गया है ?
हम जिसको उखाड़ने चले थे आज वही ताकतवर हो गया है ?
क्योंकि जब से आरम्भ हुआ है राजनीती का पाखण्ड  !
वह मा बाप से भी सबल हो गया है ?
मध्यकाल का इतिहास प्रबल हो गया है ?
सल्तनत का विदा हो जाना कितना सरल हो गया है ?
क्योंकि जबसे मुखौटों का चलन हो गया है।



  

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