शुक्रवार, 28 अप्रैल 2017

एहसास ही तो है जिंदगी ,

एहसास ही तो है जिंदगी ,
अन्यथा जी तो बहुतेरे लोग रहे हैं !
सदियों से और आगे सदियों तक
जीते रहेंगे और अहसास के बिना !

हमारे लोग जी तो रहे हैं,
पर अहसास अपने आप में उन्हें
उन्हें अहसास ही नहीं होता !
जीवन का ! और उनके आगे !

हमने सपने  गढ़े  तो बहुत थे
पर उसका एहसास नहीं  करा पाया !
पर उसने महशुस कर लिया ?
और सपने ही नष्ट कर दिया !

एहसास को मारकर
जिंदगी दे दी उसने बहुजन को
जो रोज रोज मरता है
उसे एहसास नहीं होता !

वह धार्मिक है ?
पर धर्म क्या है उसे नहीं जानता !
इसीलिए उसे धार्मिक बने रहने का हक़ है !
बिना सत्य के एहसास के !

- डॉ.लाल रत्नाकर 

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