तुम्हारे जज्बात की क्या ? तुम्हारे सौगात की क्या ?
हमें तो फख्र इसपर है, कि तेरे ऐसे एतबार से क्या ?
वतन पे बे-इंतहा कब्जा , चमन पे उनके डालकर पर्दा ?
चलो उस जश्न में शामिल हों जहाँ मातम फख्र है उनका ?
जो हमें रुलाएं रूबरू होकर उन्हें अब आजमाएं तो !
बताएं अब वो कहाँ पर हैं जिन्हें वे राष्ट्र भक्त कहते हैं !
किसलिए वो जो नित वतन पर, न्योच्छावर हो रहा है !
कभी तो बे-आबरू होकर , इस वतन को लुटने वाले !
वतन बर्वाद करने वालों के बयां पर करो जुम्बिश भी !
अपने वतन पर हो ज़रा कुर्बान उनके बाल बच्चे भी !
-डॉ. लाल रत्नाकर
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