हम भी तो चाहते हैं की वह सहज हों !
जबकि हम उनके लिए इस ओर बने हैं
हमेशा खड़े रहकर सहयोग करते रहे हैं
पर वो है की मानते ही नहीं शिवा उनके
जो उन्हें फूटी आँखों नहीं देखना चाहते
यह उन्ही के चक्कर काट रहे होते हैं !
उस स्वान की तरह जिसे यह विश्वास
न जाने क्यों हो गया है की यह अपने हैं !
वे जिन्हे केवल उन स्वानों से मोह है !
जो या तो पालतू हैं या उन्हें चाटते हैं !
चाटने और काटने का मर्म समझना
सहज नहीं है पर उसे यही समझाना,
कितना मुश्किल है क्योंकि वह उन पर
भरोसा करते है जो कहीं से भी भरोसे
के यद्यपि लायक नहीं हैं ?
डॉ. लाल रत्नाकर
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