डा.लाल रत्नाकर
संस्कृति का विचार किससे करोगे
जिसने इस संस्कृति का विनाश किया है।
या जिसने सांस्कृतिक साम्राज्यवाद गढ़ा है ।
संस्कृति का विचार किससे करोगे
जिसने इस संस्कृति का विनाश किया है।
या जिसने सांस्कृतिक साम्राज्यवाद गढ़ा है ।
संस्कृति पतनोन्मुखी है या उत्थानोन्मुखी ।
जब जब हमने इसपर सवाल उठाया ?
तब तब मेरा मुँह बन्द कर दिया गया ।
सांस्कृतिक साम्राज्यवाद में किसकी कितनी
हिस्सेदारी इसका लेखा-जोखा कौन करेगा ?
इस संस्कृति में जिन्होंने हमें केवल सेवक बनाया है
और स्वयं उसका मालिक बन बैठा है
यही कारण है कि संस्कृति और अपसंस्कृति का
भेद खत्म होता जा रहा है और बहुत तेजी से
जब देश वैश्विक संस्कृति अपनाता जा रहा है
और अपनी संस्कृति को झुठलाता जा रहा है
आइए हम संस्कृति के हर सोपान के बारे में
गहराई से विचार करें और संस्कृति को संस्कृति
बनाए रखने के लिए सच को स्वीकार करें ?
संस्कृति किसी की धरोहर नहीं होनी चाहिए
और न हीं संस्कृति को हमलावर होना चाहिए
हमारी संस्कृति उनकी संस्कृति से अलग होनी चाहिए
जिन्होंने संस्कृति के नाम पर भ्रष्टाचार पाखंड दुराचार
अख्तियार कर साम्राज्यवाद का नया परचम फहरा दिया है
और उसी का नाम राष्ट्रीय साम्राज्यवाद और हिंदू रख दिया है
हिंदू का मतलब केवल और केवल एक जाति का
सांस्कृतिक साम्राज्यवाद है
जिसमें वह राजा है बाकी सब प्रजा है ?
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