शुक्रवार, 14 अप्रैल 2017

शर्म हया जिनको छू तक नहीं जाती।

शर्म हया जिनको छू तक नहीं जाती।
वो तो किसी के जीत का जश्न मनाते हैं
और सत्ता की मलाई खाते हैं।
संघर्षों से उनका क्या मतलब ?
उसके लिए जन्में ही नहीं है वो ।
कल तक तो थे वह यही इधर,
जो उधर का साज बजाते हैं।


आओ मिलकर हम जश्न मनाएं,
जब हार गया दुस्साहस है।
जिसको एहसासों की भी अनुभूति नहीं है।
जहां समझ की समझाइश का है घोर अकाल
जिसके कुल का 
जहां महाकाल लगा हो। 
दुश्मन का साम्राज्य वहीँ सजा हो।
अपनों के सपनों का डर न हो जिसको।
आखिर वह राजा कैसा ? 

कैसा शासक या है कुलनाशक।
उसका कैसा विश्वास सबल हो।
सत्ताबल का अभिमान प्रबल हो।
बड़े नाश का भाष और ज्ञान नहीं हो ।
जातियो की उसको पहचान नहीं हो ।
जातीयता का अभिमान नहीं हो।
समता का भी मान नहीं हो।
अपनों का भी ज्ञान नहीं हो।
कैसा शासक या है कुलनाशक।
-डा.लाल रत्नाकर

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