रविवार, 6 अगस्त 2017

हे पक्षी !


हे पक्षी !
तू किसका इंतजार कर रहा है ?
राजनीतिज्ञ का ?
अभी वह कहीं चला गया है?
अभी जहां राजनीति
चली गई है ।

यहां व्यापारियों का
बहुत बड़ा समूह !
सियासत में लगा हुआ है
और सियासत में आ गए लोग
अपनी अपनी कीमत से
अधिक मूल्यों में बिक रहे हैं ?
आवाम की कीमत पर !
आवाम से टैक्स के रूप में ?
इनकी कीमत तय हो रही है
खरीद फरोख्त जारी है !
राजनेताओं की।
क्या आज की राजनीति
इन व्यापारियों को यह
इजाजत देती है।

हां राजनीति के
उपहास का अवसान हो
उससे पहले वह बाजार में खड़ी हो गई है
जहां उसकी कीमत लगाई जा रही है
सामान बेचने वालों की हालत
राज बेचने वालों के रूप में
आज नजर आ रही है
कुछ व्यापारी अपने वतन से
व्यापार करने
राजनीतिज्ञों के इलाके में
पधार गए हैं।

-डॉ.लाल रत्नाकर 

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