जनता भूखी नंगी है
सत्ता सामंती झूठी है
मन के काले अरमानों को
हम पर अब वह थोप रही है
भक्ति भाव में झोंक रही है।
अंधकार भी ठोक रही है।
सामंतों सा बोल रही है।
सब कुछ झूठा।
सत्य है झूठा नारा झूठा।
हो क्या अब मैं सोच रहा हूं।
लूट मार कर।
जान मारकर।
जनता का स्वाभिमान मारकर।
सबको फूसलाता घूम रहा है।
सबको झुठलाता घूम रहा है।
-डॉ.लाल रत्नाकर
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