यह कैसा राज है
धीर है अधीर है
हम अभी गंभीर हैं
वक्त के हिसाब से
वक्त की किताब से
लेनदेन कर रहे हैं
राज के सुराज से
बदल रहे हैं मानदंड
हम नए समाज का
ला रहे हैं पाखंड हम
अब गजब कमाल का
भूख-प्यास का यहां
नहीं कोई हिसाब है
कैशलेस हो रहा
अब यहां समाज है
यह कैसा राज है
जहां धन बेहिसाब है।
-डॉ.लाल रत्नाकर
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