रविवार, 6 अगस्त 2017

यह कैसा राज है


धीर है अधीर है 
हम अभी गंभीर हैं
वक्त के हिसाब से 
वक्त की किताब से
लेनदेन कर रहे हैं
राज के सुराज से
बदल रहे हैं मानदंड
हम नए समाज का
ला रहे हैं पाखंड हम
अब गजब कमाल का
भूख-प्यास का यहां
नहीं कोई हिसाब है
कैशलेस हो रहा
अब यहां समाज है
यह कैसा राज है
जहां धन बेहिसाब है। 

-डॉ.लाल रत्नाकर 

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