रविवार, 13 अगस्त 2017

अलविदा !

अलविदा !


हमने जिनको संवारा,
उनके खूबसूरत मन हो गए।
वो चमन हो गए।
उनको लगने लगा कि
वो मंदिरों के बुत हो गये।
उनके दर्शन भी अब तो
हैं बहुत मुश्किल हुए।
जैसे काशी मथुरा के
वे देवगन हो गए।
जिनको मैंने संवारा
वो चमन हो गए।
मैंने ठाना है कि
मैं ऐसे खड़ा ही रहूं
अपने हाथों में ऐसी ही पतवार ले
जब वो कश्ती समंदर के
जन हो गये।
डर है तूफां उन्हें
ले कहीं ना निगल ।
आज जिनके वशीभूत
अब उनके मन हो गये।
हमने जिनको संवारा,
उनके खूबसूरत मन हो गए।
वो खूबसूरत वतन हो गए।
वो चमन हो गये ।
हमने जिन जिनको संवारा,
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डॉ. लाल रत्नाकर

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