रविवार, 6 अगस्त 2017

पशु हो कर कविता करता हूं


मैं पशु हूं
पशु हो कर कविता करता हूं
मेरी कविताएं इंसानों के लिए नहीं है
और पशुओं को कविताएं समझ में नहीं आतीं
इसीलिए इन कविताओं काे मंच नहीं मिलता
तभी तो हम सड़कों पर चौराहों पर
और गली मोहल्लों में कभी कभी
कविता पाठ करते रहते हैं
क्योंकि मेरे चरागाहों का
अतिक्रमण हो गया है
कहीं ग्रीन बेल्ट के नाम पर
और कई लोगों ने अपने घरों के सामने
घेर रखा है मेरे चरागाह !
मेरी कविताओं में किसी को भी
चिढ़ाने के लिए कोई शब्द नहीं होता
किसी को फसाने के लिए श्रृंगार नहीं होता
मेरी अपनी उपस्थिति बताने के लिए
केवल और केवल मेरा हुंकार होता है
यही मेरा अहंकार है।
क्योंकि आजकल मेरे रखवाले
चरवाहे नहीं है वह है
जो मेरे नाम पर लोगों की जान ले ले रहे हैं
अभी तो हमारी भाषा हमारी बोली
सब कुछ समझ में नहीं आती
हम प्रयास कर रहे हैं कि
कविता करते करते अपनी बात
लोगों तक समझा सकेंगे
जिससे लोग मेरे साथ खड़े हो
और जो मेरे नाम पर
लोगों को मार रहे हैं उनकी
असलियत का पता चल सके।
अभी भी मुझे डर है कि जो
मेरी कविता नहीं समझ पाएंगे
वह उनको नहीं समझ पाएंगे
जो हमारे नाम पर
लोगों को मार रहे हैं
इसलिए मेरी कविता को समझिए
और उसके प्रभाव से
लोगों के जीवन की रक्षा कीजिए।
मैं पशु हूं
पशु हो कर कविता करता हूं.


-डॉ. लाल रत्नाकर 

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