बुधवार, 9 अगस्त 2017

उसी तंत्र का करने चला है खून



तुम्हारे राज करने से हमें तकलीफ क्यों हैं ?
तुम्हारा राज आया तो उसी लोक तंत्र से है
तुम्हारा राज कायम है तुम्हारी बेईमानी से
कहो सच सच क्या तुम अब लोकतांत्रिक हो ?

छल फरेबों से बहुत आहत रहा है मुल्क ?
सदियों की गुलामी भी सहा है हमारा मुल्क !
तुम कोई पहले नहीं हो इस मुल्क के गद्दार !
पहले भी बहुत आये थे ठग यहाँ व्यापारी बन !

तुम्हारा व्यापारियों के संग कैसी सांठ गाँठ है
पता चलने लगा है अब यहाँ की दाल रोटी से
नमक खाकर यहाँ का वो ईमान के सौदागर 
बहुत खलने लगा है अब नया व्यभिचार सहकर !

तुम्हारी ताकतें तुमको कहीं अब कैद न कर लें
पडोसी की नियति से ही तेरा ईमान बिगड़ा है
मगर अफ़सोस है तू तो महाशतिर जो निकला ?
उसी तंत्र का करने चला है खून तुम अब तो !

-डॉ लाल रत्नाकर

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