गुरुवार, 14 सितंबर 2017

जो सवाल हमें बार बार कचोटता है !


चित्र और कविता : डॉ. लाल रत्नाकर 
जिस बात को वह समझ रहा है
हमारे लोग क्यों नहीं समझ रहे हैं ?
यही तो सवाल है जो खाये जा रहा है
अब इसको समझाने के लिए ?
हमें नेता नहीं शिक्षक बनना होगा ?

हमारे लोगों ने एकजुट होकर
जब एक सामाजिक संगठन बनाया था
और उसी के बलपर हर जगह से
एक समुदाय के लोगों को मात दिया था
मत और सर्वसम्मति से हटाया था !

जो सवाल आज बहुत जटिल हो गया है
हमारे साथ खड़ा समाज उधर हो गया है
जिसे उसने हमारे साथ आकर हराया था
क्या हमने उसको अपने साथ सत्ता में
अदब और कायदे से बैठाया था ?

जो सवाल हमें बार बार कचोटता है
की सत्ता में तुम उसे हिस्सा देते हो
जो तुम्हारे लोगों का असली दुश्मन है
उस असली दुश्मन को गले लगाए हो !
क्योंकि तुम्हे अपने लोगों से डर लगता है ?

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