शनिवार, 9 सितंबर 2017

क्या कर रहे हो मेरे दोस्त !


क्या कर रहे हो मेरे दोस्त !
क्या तुम्हें पता है कि तुम क्या कर रहे हो ?
तुम्हें नहीं पता कि तुम क्या कर रहे हो ?
हजारों साल के संघर्ष को कुचलने वाले !
क्या उन आतताईयों के साथ खड़े हो !
जो सब कुछ तहस नहस कर रहे हैं !
क्या इनको पहचानते हैं ?
ये बहुत खतरनाक है ?

चलो शायद तुम्हारी समझ में तब आये ?
जब तेरे पास जलजला आ जाये !
भाग करके कहां जायोगे यहां से ?
जब सामत तुम्हारे पास आ जाये ?
मेरे दोस्त तुम बुजदिल तो नहीं हो ?
काश यह एहसास मेरा गलत हो ?
और आप अपनी जगह सही भी हों ?
पर नहीं पता कि तुम क्या कर रहे हो ?
क्या तुम्हें पता है कि तुम क्या कर रहे हो ?
क्या कर रहे हो मेरे दोस्त !

-डा.लाल रत्नाकर















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