शनिवार, 9 सितंबर 2017

ए मेरे दोस्त

ए मेरे दोस्त
तुम यह क्या कर रहे हो
कहां जा रहे हो
सचमुच तुम बेखौफ होकर के
जिस काम में लगे हो
वह तुम्हें कमजोर करता है
तुम राष्ट्रवादी नहीं हो
तुम्हें राष्ट्र का ज्ञान नहीं है।
तुम्हारी उर्जा तुम्हें।
वहां धकेल रही है
जहां से तुम्हारी कौम का
विनाश होना है।

और सदियों से
तुम्हारे जैसा युवा
अपने विनाश का कारण
बनता आ रहा है।
ए मेरे दोस्त ठहरो
तुम सदियों से
जिस व्यवस्था को ढोते आ रहे हो
वह दरअसल उनके लिए है।
जिन्होंने तुम्हारे विनाश के लिए
हजारों तरकीबें गढ़ी है
जिसमें से सबसे कारगर
सांस्कृतिक साम्राज्यवाद है
और इस साम्राज्य से
जब तक तुम नहीं लड़ोगे।
तब तक तुम इसी तरह के
विनाश का ध्वजवाहक
बने रहोगे क्या ?
जागो यह रंग
विकास का नहीं
बहुजनों के विनाश का है
अगर तुम्हें यह गलतफहमी है
यह तुम्हें धार्मिक बनाता है
तो बता सकते हो कि आज तक
तुम्हारे कितने लोगों को इस धर्म का
ठेका दिया गया है।
तुम्हारे पास कोई हिसाब नहीं है।
क्योंकि तुम कारिंदे हो
धर्म के उन ठेकेदारों के
जो तुम्हारा शोषण कर रहे हैं
तुम्हें धार्मिक बता करके।
मेरे मित्र
कभी विचार किया
कि तुम मनु के विधान में
कहां खड़े हो।
अपनी गलत जगह
पर नजर डालो
तुम्हें उन्होंने
उन्हीं के साथ रखा हुआ है
जिन्हें तुम शूद्र कहते हो।
मेरे मित्र
सदाचारी बने रहना है तो
आओ हम तुम्हें ध्वज देते हैं
जिसका रंग हरा होगा
उसमें समता और समानता होगी?
तुम्हारे श्रम की
खुशहाली होगी
और तो और
इस रंग से तुम्हारे अंदर
खुशहाली और संपन्नता का
विकास होगा
क्योंकि यह रंग
ईर्ष्या-द्वेष विकार से दूर रखता है
इसीलिए तो हर अस्पताल की खिड़कियों पर
यह चढ़ा रहता है।
-----

डॉ.लाल रत्नाकर

कोई टिप्पणी नहीं: