सोमवार, 25 दिसंबर 2017

ऐसा समाज बदल दो !

रस्मों रिवाज बदल लो !
अपनी आवाज़ बदल लो !
आततायियों का दौर है !
सुनना दुश्वार है !
बहुजन लाचार है !

पाखण्ड का चमत्कार है !
सदियों से जिनके चेहरे !
चमक रहे हैं उन कारणों से !
उन कारणों को ? 
क्या वे समझ पायेंगे !
जो इनके पाखण्ड में आकंठ !
जकड़े हुये हैं सदियों से ?
क्या अपनी आवाज़ उठा पायेंगे !
तभी तो कह रहा हूँ !
रस्मों रिवाज बदल लो !
अपनी आवाज़ बदल लो !
आततायियों का दौर है !
रस्मों रिवाज बदल लो !
ऐसा समाज बदल दो !

-डॉ.लाल रत्नाकर
(आरेखण एवं चित्र : डॉ.लाल रत्नाकर)

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