शुक्रवार, 29 दिसंबर 2017

क्या मैं मानव हूँ ?


मैं मानव हूँ !
मुझे राक्षस की तरह क्यों ?
देखा जा रहा है सदियों से !
मानवता के सारे मानदण्ड !
तभी तो तोड़े जा रहे हैं ?
दानवता के विकास के लिए !
पर जिन्हें उठाना है हथियार ?
उन लोगों के लिए ?
जो दानवता के ख़िलाफ़ !
खडे होने का साहस कर रहे हैं !
और उन्हें बंद कर दिया जाता है !
इसलिए कि वे दानवता के विरुद्ध
आवाज़ उठा रहे है ?
कि वह मानव नहीं दानव है ।
क्योंकि आजकल दानवो को ही !
मानव के रूप में स्थापित किया जा रहा है !
तभी तो अच्छा ख़ासा मानव !
दानवीय प्रवृत्तियों की तरफ़ बढ़ रहा है !
यह कैसा समय आ गया है ?
जब कोई भी मानव बने रहने के लिए !
न तो संघर्ष कर रहा है !
और न ही मुँह खोल रहा है !
यह जानते हुए भी कि सब कुछ !
तहस नहस हो रहा है !
मानवता के विरूद्ध ।
-डॉ.लाल रत्नाकर

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