बुधवार, 7 मार्च 2018

शहंशाह

- डॉ.लाल रत्नाकर
ओ शहंशाह !
तुम अंधे हो या तेरी आंखें पथराई हैं।
ओ शहंशाह यह तेरा मुकुट मुखौटा !
असली है या नकली है ऐ शहंशाह !
जो भी है वह तो तुम जानो!
पर जनता तुमसे डरी हुई है!
ओ शहंशाह यह रूप तुम्हारा कैसा !
क्या सचमुच वाजिब है यह पहनावा !
क्या फबता है तुम पर !
यह तो तुम जानो !
तुम शहंशाह हो!
यह तो मानो !
तुम रोते हो।
तुम हंसते हो।
और ठिठोली करते हो।
पर झूठ बोलते कभी नहीं थकते हो !
तुम सचमुच के शहंशाह हो !
कुछ भी कहना !

तुम्हें कभी भी नागवार नहीं लगता !
क्योंकि तुम शहंशाह हो!


क्या मैं भी ऐसा ही ?
कभी शहंशाह बन पाऊंगा।
रंगों का !
रेखाओं का।
आकारों और विचार का।
जो तुमको रंग पाऊंगा।
ओ शहंशाह।
कैसे पहचानूं ।
कैसे मानूं ?
तुम शहंशाह हो ?
रंग तुम्हारे !
ढंग तुम्हारे !
शक्ति तुम्हारी !
लोकतंत्र में ?
भक्ति हो कैसी !
क्योंकि तुम शहंशाह हो।
वह भक्त तुम्हारे!

तुमको हमने !
शहंशाह सा बनता देखा
सुंदर और असुंदर देखा।
आंखों में एक सपना देखा।
रेखाओं में अपना देखा।
रंगों में नहीं सादगी तुम्हारे।
इसका मतलब।
जो भी निकाले।
ओ शहंशाह।
भृकुटि तुम्हारी ?
तुम कैसी कृति हो ?
ओ शहंशाह।

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