मंगलवार, 20 मार्च 2018

बहादुरों बढ़े चलो

बहादुरों बढ़े चलो
बढ़े चलो बढ़े चलो
बढ़े चलो बढ़े चलो
बहादुरों बढ़े चलो!

अभी तो यह पुकार है
बहादुरों तुम्हारे यार की
खड़े हो अपने पांव पर
अडो तुम इस पडाव पर
कि हक हमारा छोड़ दो
इतिहास को अब छोड़ दो
बहुत गलत हो लिख लिये
जमीर अपनी बेचकर।
बहादुरों बढ़े चलो
आन शान बान तक
बेईमान के गिरेबान तक
पकड़ के उसको खींच लो
चुनाव के मियान से।
संविधान के लिए
बढ़े चलो बढ़े चलो।
मनु का चोला ओढ़कर
राम राम बोल कर
हड़प रहा है देश को
लूटकर के संपदा
भगा रहा विदेश को
कहां सो रहे हो तुम
पीला वस्त्र ओढ़कर।
स्वदेश के अभिमान में।
अपनों के अपमान में।
उठो खड़े हो दोस्त अब
सम्मान व स्वाभिमान में
वह हमें ललकारता है
मान और अपमान में
हमारे स्वाभिमान में।
खोजता अपमान है।
-डॉ.लाल रत्नाकर 

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