रविवार, 25 मार्च 2018

क्यों कबाड़ बना रहे हो मुल्क को !


डॉ.लाल रत्नाकर 

जैसे जैसे तमाम चीजें पुरानी हो रहीं हैं
फिर तुम कैसे पुराने नहीं पड रहे हो !
क्या तुम बदल रहे हो अपने को नित ?
या तुम पुराने कबाड़ से ही निकले हो !

क्या तुम्हे नहीं पता उस कबाड़ को लोग !
फेंक चुके हैं तो फेंकी हुयी चीज हो तुम !
फेंकी हुयी चीजें कईबार काम आ जाती है !
क्योंकि जब और विकल्प नहीं होता तब ?

यानी फेंकी हुयी सामग्री को यह भ्रम नहीं होता !
वह जानता है की उसकी उम्र ख़त्म हो चुकी है !
कई कई बार उसकी कमिया जानते हुए लोग !
इस्तेमाल कर लेते हैं उसे कबाड़ से निकालकर!

कबाड़ में रह चुके वो लोग या तुम जैसे कबाड़ी !
कबाड़ियों क्यों कबाड़ बना रहे हो मुल्क को !
  

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