सोमवार, 2 जुलाई 2018

गद्दारों की ग़द्दारी ।


रेखांकन : डॉ.लाल रत्नाकर  

बहुत हो गयी अब ग़द्दारी समझो न इसको लाचारी 
चारों खम्भे टूट गये हैं ग़द्दारों की यारी से 
या ग़द्दारों की ग़द्दारी से ।

जो सत्ता में बैठे हैं वे ग़द्दारी से ही आये हैं 
यह कैसी लाचारी है जब ग़द्दारों की जब चॉदी हो
और जनता की बर्वादी हो !

यह सबको उल्लू बनाये हैं 
देश को लुटवाये है और बर्वादी को लाये हैं
हत्या और बलात्कार से सबको ख़ूब डराये हैं !

हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई 
आपस में ख़ूब लड़ाये हैं सबको ये भरमाये हैं
दोस्त और दुश्मन की ये पहचान छुपाकर अपनों को 
देश सौंपने आये हैं !

-डा. लाल रत्नाकर 



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