रविवार, 16 सितंबर 2018

नरभक्षी


सकून जिंदगी का मगर तो जरुरी है
दौड़भागकर पहुंचना तो एक मज़बूरी है
कभी इत्मीनान से बैठो और ज़रा गौर करो
वास्तव में अपनी यात्रा कितनी अधूरी है..
यही तो बात है जो बैठने नहीं देती ?
जिंदगी आग है धुआं तो गुबार है उसका।
गुमान की भी कोई सीमा है सियासत की भी।
पता करो हिरासत में हो या हिफाजत में !
आवाज तो आवाज है कोयल और कौवे की भी
हमें तो गैरत बचानी है अपनी भूखे खूंखार और
रवायती बदमिजाज़ बिगड़े हुए सियारों से !
उलझ के रह गए जो सोहरत के सवालों में !
मुझे पता ही नहीं कीमत हमारी कितनी है ?
वो तो बिक रहे हैं रहमत की फ्री स्टालों पे ?
उनसे बराबरी का क्यों इरादा पाले हो पगले ?
क़ीमत पर सकूं जिंदगी का क्यों बर्बाद करना है !
हमारी हार या जीत का हिसाब तू मत करना !
तुम्हारी जीत से नफरत की बू आ रही मुझको !
सियासत में सियासत है हिफाज़त तो बहाना है।
तुम तो फलसफा हो अभी उसकी हिफाज़त में !
उसने तो निगला है सियासत के निवाले में हज़ारों !
इन्सांनों की रवायत है उसे पता और क़ीमत भी !
तुम्हारा शौक है पूरा करो ज़रा हिफाज़त से !

डॉ.लाल रत्नाकर

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