मेरी एक दर्ज़न तस्वीरें !
तुम्हारी हज़ारों इमारतों से !
कैसे बड़ी हैं यही तो समझाना है ?
जिसे समझने में बडे से बडे
गफ़लत में फँस जाते हैं।
इमारतें तुम्हारी हैं ज़रूर
पर इन्हें तुम्हारी अंगुलियों ने रचा नहीं है ?
जिन्होंने इन्हें बनाया है ।
उन्होंने इसपर हस्ताक्षर नहीं किया है ?
क्योंकि उन्हें रोज़ की दिहाडी पर !
लगाया गया था !
पर वे नहीं चाहते कि उनके हस्ताक्षर हों !
क्योंकि इमारत के बनाने के लिये !
जितने लोग लगाये गये हैं !
उनके हस्ताक्षर कहीं नहीं हैं ?
इसीलिये यह इमारतें आकार में !
जितनी भी बडी हों पर !
मेरी तस्वीरों से बडी नहीं हैं ।
-डा.लाल रत्नाकर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें